Tuesday, April 27, 2010

शोएब मालिक का सच

सुना है सानिया मिर्जा से निकाह करने के बाद पकिस्तान में दावत-अ- वलीमा में जुटने वाले अखबार नवीसों से कार्यक्रम की कवरेज के लिए पकिस्तान के क्रिकेट खिलाडी शोएब मालिक ने साढ़े तीन करोड़ रूपये की मांग की है। कमाल है अपनी खुबसूरत बीवी और एक मुल्क में शान बनी लड़की के साथ पाक बंधन में बंधने के बाद शोएब जैसा "इंसान" लोगो के प्यार और उत्सुकता की जानकारी बांटने के लिए भी पैसा मांग रहा है। शर्म आती है अपने आप को सेलेब्रिटी कहलाने का दावा करने वाले ऐसे बेशरम लोगो पर जो एक मुल्क में अपनी अलग शख्सियत होने के दम पर किसी दुसरे मुल्क की लड़की से शादी करके अपने मुल्क जाकर ऐसी घिनौनी मांग करते हैं। देखा तो नहीं है। लेकिन ऐसे ही वाकियों को सुनने का बाद लगता है की पकिस्तान के लोगो पर यकीं करना ठीक नहीं है। क्योंकि जो लोग अपनी हमसफ़र के बारे में सम्मान से जानने वाले लोंगो की भावनाओं के लिए भी पैसा मांग सकते हैं वो लोग कम से कम मेरे देश के गैरतमंद लोगो के पाँव की धूल भी नहीं हो सकते। क्योंकि मेरे देश में हमसफ़र को दिल से लगा कर रखा जाता है। उसका सम्मान करने वालों की सम्मान से एक झलक पाने की ख्वाहिश के लिए पैसा नहीं माँगा जाता है। फक्र है मुझे अपने देश और उसकी आवाम पर। क्योंकि ये देश है तो सिर्फ मेरा।

Monday, April 26, 2010

फिर बदली गडकरी की जुबान!

भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने एक अपने एक बयान में कहा है कि १९८४ में हुए सिख विरोधी दंगो के लिए कांग्रेस को जिमेद्दार ठहराना ठीक नहीं हैं। क्योंकि वो दंगे एक हत्याकांड के बाद हुए थे और वो लोगो की अपनी भावनाओ के कारण हुए थे। हो सकता है के कुछ लोग किसी पार्टी विशेष से जुड़े हुए हों। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि कांग्रेस इसके लिए जिम्मेदार है। उन्होंने ये बात गुजरात के दंगो के लिए वहां के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को जिम्मेदार न मानने के सम्बन्ध में तर्क रखते हुए कही थी। सवाल ये नहीं है कि गुजरात दंगो के लिए मोदी जिम्मेदार हैं या नहीं। सवाल ये है के १९८४ के जिन दंगो की हकीक़त से पूरा देश वाकिफ है, उन दंगो के लिए गडकरी अपने बचाव में इतिहास को झुठलाने का प्रयास कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का ये बयान लाल कृष्ण अडवानी के उस बयान जैसा ही है जिसमे उन्होंने देश का विभाजन करने के लिए जिम्मेदार मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ की थी। लेकिन एक बहुत बड़ा फर्क है। वो ये कि अडवानी को लोग गंभीरता से लेते हैं और गडकरी को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी वो सम्मान नहीं मिल सका है। लेकिन गडकरी को ये ध्यान रखने की जरुरत है के देश में सब कुछ इतिहास और संस्कृति की बदौलत चल रहा है। हकीक़त को झुठलाने वाले बयान लोगो को हजम नहीं होते। और हाँ वो ये भी ध्यान रखें की जनता की नज़र में अडवाणी के एक ही बयान ने उनको राजनीतिक बुलंदियों को धरातल पर ला दिया था और गडकरी तो अभी तक बुलंदियां भी नहीं छू पायें हैं। अपना नहीं तो कम से कम भाजपा के रुतबे का तो ख्याल करें "गडकरी जी"। क्योंकि मेरे देश में जनता वोट भले ही किसी को भी दे देती हो लेकिन जख्मों को कुरेदने वाले लोग उसे पसंद नहीं हैं। क्योंकि कुछ ऐसा ही ही है "ये देश मेरा".

Sunday, April 25, 2010

आईपीएल का बुखार और बेखबर ''सरकार''

देश में नौजवानों से लेकर मीडिया तक पर आईपीएल का बुखार चढ़ा हुआ है। क्रिकेट के मैदान में आईपीएल का जुनून पैदा करने वाले ललित मोदी अब खुद इस मामले में खलनायक नज़र आ रहें हैं। ट्विट्टर पर लेख लिखकर देश कि जनता को जानवर कि संज्ञा देने जैसी घटनाओं से चर्चित केंद्रीय मंत्री शशि थरूर भी इसमें फंसे और खुद पर लगे आरोपों के "दाग" से नहीं बच पाए। बहरहाल आईपीएल की खुमारी और ज्यादा बढ़ गयी है। मंत्री जी तो सफाई देते-देते खुद साफ़ हो गए। लेकिन अब उन्ही की तरह मोदी जी कह रहें हैं कि सीट नहीं छोडूंगा। चाहे जो भी हो जाये। इतना ही नहीं धमकी भी दे रहें हैं कि "खेल" "खत्म" हुआ तो हमाम में नंगे रह चुके लोगो का पर्दाफाश कर दूंगा। आखिर वो जानते हैं कि मामले में फंसी हुई किस गर्दन का मौल क्या है। क्योंकि इस महान लोकतंत्र में "गर्दन" नहीं उसकी "मोटाई" देखकर फैसलें होते हैं। यहाँ "रसूख" बहुत मायने रखता है। तभी तो ख़बरें आ रही हैं कि कोई अपने खास खिलाडियों के लिए स्पेशल प्लेन लेकर उड़ गया, क्योंकि उनके पापा उड्डयन मंत्री थे। मैदान में सट्टेबाजी से बदनाम हुआ क्रिकेट इसी बदनामी के कारन अब सत्ता के गलियारों और धनाढ्य लोगो का शौक बन गया है। आप खुद देखिये क्रिकेट संघ के एक पदाधिकारी कोई और नहीं देश के कृषि मंत्री हैं। ये वो मंत्रालय है जिसका जिम्मा लोगो को सस्ता अनाज और खाने की चीजें मुहैयाँ करना हैं। लेकिन उनका मंत्रालय अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहा है। और जनता के रहमोकरम पर चुने गए नेताजी महंगाई कम करने नहीं बल्कि क्रिकेट के "खेल" को "सफाई" से करने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। अब तो इस करोडो के खेल में उनकी संसद बेटी के पति को भी फायदा मिलने जानकारियां सामने आ रही हैं। देश कि जनता भूखी रही है। लेकिन जिम्मेदार सरकार के होनहार नेता मैदान के खेल को सत्ता के गलियारों से ले जाकर करोड़पतियों की तिजोरी में पहुँचने में जुटे हुए हैं। लेकिन सरकार बेखबर है। हालाँकि हल्ला मच रहा है। लेकिन तब तक, जब तक कि मीडिया को इससे बड़ी कोई घटना या घोटाला नहीं मिल जाता। इतिहास गवाह हैं। हादसें ख़बरों का रुख मोड़ते रहे हैं और घोटालों के दौरान बेशर्मी से मुस्कराकर "कानून" में "विश्वास" जताने वाले लोग आज भी इस "महान लोकतंत्र" में "आज़ादी" से "सुरक्षा" के साथ घूम रहे हैं। ''खेल'' था ''हो'' गया। लोगो को समझना होगा। क्योंकि ऐसा ही है ''ये देश मेरा''