Sunday, May 30, 2010

नक्सालियों से दहशतजदा सरकार


नक्सलवाद ने एक बार फिर बेक़सूर लोगो की जान ले ली। पश्चिम बंगाल में हुए ट्रेन हादसे में डेढ़ सौ लोगो को अपनी जान गवानी पड़ी। रेल मंत्री कहती हैं ये हादसा नक्सालियों की देन है और देश के गृहमंत्री कह रहे हैं ऐसे कोई तथ्य सामने नहीं आये हैं की हादसा नक्सालियों की देन है। लेकिन ट्रेन में मौजूद करमचारियों ने अपने बयां में हादसे के लिए बेरहम और आतंकवाद की राह पर चल रहे देशद्रोही नक्सालियों को आरोपी ठहराया है। कमजोरी और राजनीतिक कारणों से सरकार की चुप्पी से वाकिफ नक्सालियों ने दांतेवाडा के बाद कई नरसंहार करते हुए फिर से सरकार को उसकी और अपनी औकात बता दी है। धोखे से वार कर बेकसूरों की जान लेने वाले कायर और देशद्रोही नक्सालियों को ठिकाने लगाने के बजाये सरकार अभी तक कोई रणनीति ही तय नहीं कर पाई है। देश की राजधानी में नक्सल समर्थक जेएनयू जैसे विश्वविधालय में केंद्र सरकार की नाक के नीचे जवानों की मौत पर जश्न मानते हैं। पुलिस शिकायत मिलने पर भी रिपोर्ट दर्ज नहीं करती। भले ही ड्यूटी पर बरहमी से उनकी ही जैसे जवानों की कायरता से हत्या क्यों न कर दी गयी हो। देश की मजबूत बताने वाली सरकार देशद्रोहियों का समर्थन करने वाले गद्दारों के खिलाफ करवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। पश्चिम बंगाल के हादसे के बाद ठोस करवाई करने के बजाये रेल मंत्रालय में नक्सल प्रभावित इलाकों में रात में रेलों कि आवाजाही नहीं करने का फैसला किया जा रहा है। ताकि जान माल के नुक्सान को रोका जा सके। जिन कायरों को जूतों तले कुचल देना चाहिए था उनकी दहशत में रात को ट्रेन नहीं चलने का फैसला सरकार की मजबूती (?) कर रहा है लेकिन फिर भी आवाम चुप है। क्योंकि यहाँ वो जिन्दा दिल लोग रहते हैं जो हादसों की परवाह नहीं करते। कितना भी बड़ा भूचाल आ जाये या लोगो की जान चली जाये, लोग अगले ही दिन फिर से अपने काम में जुट जाते हैं। लेकिन फिर भी सा गर्व से खड़े रहते हैं। क्योकि हम हर हाल में यही दोहराते नज़र आते है कि ये देश है मेरा

Friday, May 21, 2010

बेईमानों की दुनिया

जब कभी समाचार पत्र या टीवी पर धोकाधडी या अपनों के विश्वास का खून करने की घटनाओं के बारे में पढता या देखता था तो मन में ख्याल आता था कि कोई भी इंसान कैसे किसी का विश्वास तोड़ सकता है। लेकिन कहते हैं कि इस दुनिया में हर बात का जवाब यहीं मिल जाता है। ये सच भी है। कल तक पैसे का रोना रोकर मदद मांगने वाला इंसान थोड़ी ही कामयाबी मिलने के बाद कैसे आँखे बदलता है, एक घटना के बाद अब मुझे भी समझ आ गया। लेकिन अभी भी यकीं नहीं होता कि खुद को आपका हितेषी बताने वाला इंसान कैसे आपकी पीठ में छुरा घोपने से बाज नहीं आता। वो भी केवल इसलिए कि उसे पैसा ज्यादा प्यारा लगने लगता है, और इसलिए वो अपने वायदे और बातें भी भूल जाता है। खैर जवाब इसी जमीं पर मिलता है तो धोका करने वालों को परिणाम भी इसी जमीं पर मिल जाते हैं। बस फरक इतना है कि धोखा खाने वाला किसी पर यकीं नहीं कर पता और देने वाला अपनी मीठी बातों के साथ किसी और को ठगने कि योजना का ताना बना बुनता रहता है। बस ऐसा ही है देश मेरा......

Sunday, May 16, 2010

मंत्री जी को पड़ गए लेने के देने


दिल्ली सरकार में समाज कल्याण मंत्री की कुर्सी पर विराजमान माननीय मंगतराम सिंघल जी हाल ही में एक पंचसितारा होटल में गए थे। मुंबई के ताज होटल में आतंकी हमले के बाद तमाम होटलों की सिक्यूरिटी बढ़ी हुई है। मंत्री जी होटल में जाने लगे तो गेट पर ही उनकी कर की रोक लिया गया। कहा गया की सुरक्षा कारणों से कार की तलाशी लेना जरुरी है। अब मंत्रीदिल्ली में अलग ही हनक रखने के लिए जाने जाते हैं। भलाये ही कैसे बर्दाशत करते की मंत्री की कर की तलाशी ली जाये। क्योंकि उनकी नजर में मंत्री तो हर कानून से ऊपर होते हैं। उन्हें कहीं भी रोककर तलाशी लेने जैसा अपमानजनक काम किया जाये ये तो किसी भी सूरत में काबिले बर्दाशत नहीं हो सकता। बस फिर क्या था मंत्री जी का परा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। समाज कल्याण के साथ मंत्री जी के पास लेबर डिपार्टमेंट भी है। उन्होंने अपने रुतबे और पॉवर का पर्योग किया और होटल में छपे मरने का फरमान जारी कर दिया। ये बात और है की दिल्ली में कहीं भी लेबर कानून का मजाक उड़ने पर डिपार्टमेंट के लोग कुछ नहीं करते हों या फिर बड़े लोगो की मलाई खाकर होठों पर जीब फेरते रहते हों, लेकिन मंत्री जी का फरमान किलते ही पूरा महकमा तमाम काम छोड़कर होटल में छपे मरने निकल पड़ा। कुछ ही देर में तमाम टीम होटल में थी और होटल के दस्तावेजों की जांच शुरू कर दी गयी। लेकिन मंत्री जी भूल गए कि जिस होटल को निशाना बनाया जा रहा है वो सड़क के किनारे चल रहा ढाबा नहीं पांचसितारा होटल है। यहाँ वो लोग भी फुर्सत के क्षणों में आते हैं, जिनके दरबार में मंत्री जैसे न जाने कितने नेता एक टांग पर खड़े रहते हैं। बस फिर क्या था होटल कि और से उन लीगों तक एक सन्देश पहुँचाया गया और मंत्री जी को लेने के देने पद गए। अब मंत्री जी चुप्पी साधे हुए हैं और सरकार होटल मनेजमेंट से माफ़ी मांग रही है। पता तो ये भी लगा है कि मंत्री जी बीते साल नवम्बर में भी एक पांच सितारा होटल में ऐसा ही कारनामा कर चुके हैं। तब ताज होटल में छापे डलवाए गए थे। लेकिन वो मामला जनता की नजर में नहीं आ सका तो मंत्री जी ने फिर वही कारनामा दोहराने की गलती कर डाली। खैर इस देश में शेर पर सवा शेर पड़ते देर नहीं लगती। क्योंकि कुछ ऐसा ही है देश मेरा.....

खाप पंचायतों में ख़ून से वोट बैंक भरने की राजनीति

आजकल देश में खाप पंचायतें चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं। पुरानी परम्परा और संस्कृति के नाम पर शुरू ये पंचायतें जब कभी चर्चा में आती थी तो मुद्दे सामाजिक विकास और हक की लड़ाई से जुड़े होते थे। लेकिन समय के साथ हर चीज बदल रही है तो पंचायतों के विषय भी बदलने लगे हैं। पुरानी कहावत है की मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी। लेकिन खाप पंचायतों के काजी कुछ भी करने को तैयार हैं। यहाँ तक की अपना फरमान नहीं मारने वालों की जान लेने तक से भी उन्हें परहेज नहीं है। हवाला दिया जाता है विरासत को सहेजकर रखने का और पुरानी परम्परा को बचने की लड़ाई का। खैर विषय बहुत गंभीर है। मुद्दे और फैंसले दोनों ग़लत हो सकते हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों में मीडिया में ख़बरें चली कि कांग्रेस संसद नवीन जिंदल ने खाप पंचायतों का समर्थन किया है। ये वो ही नवीन जिंदल हैं, जिन्हें राहुल गाँधी कि सोच कि उपज मन जाता है। सोच ये कि पढ़े लिखे नौजवान राजनीति में आयेंगे तो देश का विकास तो होगा ही पुरानी रवायतें भी बदलेंगी। शायद नवीन जिंदल का खाप पंच्यातों को दिया गया समर्थन तो राहुल गाँधी कि सोच पर खरा नहीं उतर रहा है। क्या ऐसा ही है देश मेरा.......