Saturday, January 30, 2010
क्या है किसी जिन्दी का मौल?
आज मै एक घटना को लेकर किसी से चर्चा कर रहा था कि अदालत ने महज १०० रुपए के लिए क़ी गयी एक जवान युवक कि हत्या करने के तरीके को दुर्लभ घटना मानने से इनकार करते हुए, हत्यारों को मौत कि सजा देने इनकार कर दिया। कानूनी तकाजे को जानने के बाद कहा जा सकता है कि हत्या की ये वारदात दुर्लभ घटनाओं कि श्रेणी में नहीं आती। लेकिन एक प्रश्न भी मन में आ रहा है कि क्या जीवन का कोई मौल हो सकता है? पिछले दिनों मेरे एक परिचित युवक की मौत हो गयी। युवक घर में अकेला रहता था। दो दिन बाद किसी ने घर नहीं खुलने पर ध्यान दिया और पुलिस को बुलाया तो मौत कि जानकारी मिली। सभी परिचितों ने अफ़सोस जताया और दो दिन बाद किसी ने इस मौत का जिक्र भी नहीं किया। लेकिन दो महीने बाद एक परिचित युवक की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। उसकी कुछ माह पहले ही शादी हुई थी। एक महीने तक जानकार घटना का जिक्र करके अफ़सोस जताते रहे। अब तो उसके घर में भी घटना को लोग भूलने लगे हैं। लेकिन तीन माह पहले एक और युवक दुर्घटना के कारण मौत का शिकार बन गया था। उसके घर में बूढ़े माँ-बाप हैं। मरने वाला युवक दोनों के बुढ़ापे का सहारा था। युवक तो जीवन की दौड़ में मौत से हार गया, लेकिन उसके माँ-बाप आज भी हर रोज हर क्षण उसे याद करके आंसू बहाते हैं। क्योंकि अब उनका जीवन बहुत संघर्ष में बीत रहा है। तीनो घटनाओं का आंकलन करके मन में ख्याल आता है कि मौत तो तीनो ही घटनाओं में हुई है। फिर किसके जीवन का क्या मौल है? क्या सांसारिक जरूरतें ही किसी इंसान के जीवन का मौल तय करती हैं? मैंने तो सुना था कि जीवन का कोई मौल नहीं है।
Subscribe to:
Posts (Atom)