
नक्सलवाद ने एक बार फिर बेक़सूर लोगो की जान ले ली। पश्चिम बंगाल में हुए ट्रेन हादसे में डेढ़ सौ लोगो को अपनी जान गवानी पड़ी। रेल मंत्री कहती हैं ये हादसा नक्सालियों की देन है और देश के गृहमंत्री कह रहे हैं ऐसे कोई तथ्य सामने नहीं आये हैं की हादसा नक्सालियों की देन है। लेकिन ट्रेन में मौजूद करमचारियों ने अपने बयां में हादसे के लिए बेरहम और आतंकवाद की राह पर चल रहे देशद्रोही नक्सालियों को आरोपी ठहराया है। कमजोरी और राजनीतिक कारणों से सरकार की चुप्पी से वाकिफ नक्सालियों ने दांतेवाडा के बाद कई नरसंहार करते हुए फिर से सरकार को उसकी और अपनी औकात बता दी है। धोखे से वार कर बेकसूरों की जान लेने वाले कायर और देशद्रोही नक्सालियों को ठिकाने लगाने के बजाये सरकार अभी तक कोई रणनीति ही तय नहीं कर पाई है। देश की राजधानी में नक्सल समर्थक जेएनयू जैसे विश्वविधालय में केंद्र सरकार की नाक के नीचे जवानों की मौत पर जश्न मानते हैं। पुलिस शिकायत मिलने पर भी रिपोर्ट दर्ज नहीं करती। भले ही ड्यूटी पर बरहमी से उनकी ही जैसे जवानों की कायरता से हत्या क्यों न कर दी गयी हो। देश की मजबूत बताने वाली सरकार देशद्रोहियों का समर्थन करने वाले गद्दारों के खिलाफ करवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। पश्चिम बंगाल के हादसे के बाद ठोस करवाई करने के बजाये रेल मंत्रालय में नक्सल प्रभावित इलाकों में रात में रेलों कि आवाजाही नहीं करने का फैसला किया जा रहा है। ताकि जान माल के नुक्सान को रोका जा सके। जिन कायरों को जूतों तले कुचल देना चाहिए था उनकी दहशत में रात को ट्रेन नहीं चलने का फैसला सरकार की मजबूती (?) कर रहा है लेकिन फिर भी आवाम चुप है। क्योंकि यहाँ वो जिन्दा दिल लोग रहते हैं जो हादसों की परवाह नहीं करते। कितना भी बड़ा भूचाल आ जाये या लोगो की जान चली जाये, लोग अगले ही दिन फिर से अपने काम में जुट जाते हैं। लेकिन फिर भी सा गर्व से खड़े रहते हैं। क्योकि हम हर हाल में यही दोहराते नज़र आते है कि ये देश है मेरा