Sunday, June 13, 2010

ये ही है दर्द और ख़ुशी की हकीकत


बीते सप्ताह की बात है। मेरे घर ७-८ साल से इलेक्ट्रिसिटी का काम करने वाला एक लड़का कई रोज से चक्कर लगा रहा था। कई बार मुझे उससे चिढ होने लगती है। इस बार उसना बताया कि उसकी मोटरसाइकिल दो दिन पहले पुलिस वालों ने पकड़ ली है। क्योंकि उसके कागज़ घर में सफेदी करते समय कहीं खो गए थे। पहले तो मैंने कहा कि कागज़ बिना मिले कुछ मदद नहीं हो सकती। लेकिन इतना सुनते ही उसका चेहरा उतार गया और वो चला गया। अगले रोज फिर मेरे घर में बिजली सही करने आया तो बिलकुल गुमशुम था। मुझे लगा इसकी मदद करनी चाहिए और मैंने ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से डुप्लीकेट कागज़ निकलवाने का तरीका बताकर किसी बन्दे के पास भेज दिया। उसकी किस्मत से उसका काम भी हो गया। लड़का बहुत खुश था। कागज़ लेकर थाने गया तो यहाँ मिले साहब ने दो सौ रूपये की मांग कर डाली। परेशान लड़का उदास हो गया। दो दिन थाने के चक्कर लगता रहा और जब काम नहीं बना तो फिर डरता हुआ मेरे पास आया। मैंने वहां किसी शख्स से बात की। उसने लड़के की मोटर साइकिल छुडवा दी। वो बहुत खुश था। इतनी ख़ुशी शायद पहली बार मैंने उसके चेहरे पर देखि थी। और पहली बार लगा कि खुश तो कई बार मई भी होता हूँ, लेकिन उसके चेहरे पर जो ख़ुशी थी वो अहसास शायद ही कभी हुआ होगा। सोचने बैठा तो मन में आया ख़ुशी के भी कई रूप हैं। जब किसी कारण आत्मा पर चोट लगती है तो इलाज़ के बाद सुकून भी उतना ही होता है।

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