Saturday, September 26, 2009
विचारों की उथल-पुथल और जिन्दगी की मंजिल
सावधान सरकार खेल (राष्ट्रमंडल) में व्यस्त है.
सरकार कहती है कि दिल्ली में हरयाली बढ़ रही है, लेकिन गर्मी और बढ़ते हुए तापमान से जूझ रहे इंसान को सड़क किनारे सस्ताने के लिए भी छाँव तक नही मिल पाती। अब जनता है कि हर बात के लिए सरकार और अफसरों को जिमेद्दार ठहरा रही है। कहती है समस्या दूर करने में सरकार ध्यान नही दे रही। अब जनता तो जनता है। कुछ भी कह देती है। नही जानती कि सरकार को बहुत काम हैं। बेचारी सरकार के मंत्री और अफसर अपने एसी कमरों में होने वाली मीटिंगों में ही इतने व्यस्त रहते हैं कि बाहर की हकीक़त देख ही नही पाते। अब भला जनता क्या जाने राजकाज की बातें?
जानती नही है कि सरकार कितनी मेहनत करती है? अगले साल दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेल होने वालें हैं। विदेशों से बड़ी संख्या में लोग इसमे हिस्सा लेंगे। इसके लिए तैयारियां करनी हैं। जनता तो सरकार की अपनी है। बिना बिजली और पानी के भी रह सकती है। यातायात जाम और गड्ढों वाली सड़को से गुजरने की आदि हो चुकी है। लेकिन बाहर से आने वालों का ख्याल रखना ज्यादा जरुरी है। जनता को ये बात समझनी चाहिए।
इसलिए इस देश, शहर और सरकार की अपनी बेचारी जनता को चेतावनी दी जाती है कि बिजली, पानी, सड़क, यातायात जाम, अपराध, पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम या किसी और समस्या को उठाने की हिमाकत न करे। क्योंकि इससे सरकार का ध्यान भंग हो सकता है और सरकार अपने सबसे महत्वपूर्ण काम यानि खेल करने....ओह....माफ़ करें खेलों कि तैयारी में व्यस्त है।
Thursday, September 24, 2009
किसके लिया और किसके साथ
Wednesday, September 23, 2009
खजूरी हादसा और सरकार. ये दिल्ली है मेरे यार
कौन कहता है सड़क पर भीख मांगते हैं भिखारी
हैरान होने की आवश्यकता नहीं है। यहां आपको भिखारी नहीं, बल्कि ऐसे लोग ही नजर आएंगे जो लाल बत्ती पर रूकी हुई आपकी कार के शीशे पर हाथ मारकर पैसे मांगते हैं। आप भले ही उन्हें इंकार कर दें या कार से दूर होने के लिए कहें। मगर क्या मजाल की वह अपने अधिकार के लिए ना लड़े! जब तक बत्ती लाल रहेगी, कार के शीशे को थपथपाते उनके हाथ और कार से चेहरा सटाकर भीतर झांकती उनकी निगाहें हट नहीं सकती। आपको बुरा लगता है तो लगता रहे! उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं है। वह तो अपने कार्यक्षेत्र में अपना काम कर रहे हैं। अब आपको नहीं पसंद आया तो न सही। लेकिन उन्हें भिखारी कहने का अधिकार आपको नहीं है!
सड़क और चौराहों पर भीख मांगने वाले लोग कोई मामूली आदमी नहीं है। वह इस काम के लिए बाकायदा पुलिस और समाज कल्याण विभाग को अपनी कमाई में हिस्सा देते हैं। वह ऐसे प्रोफेसनल व्यापारी लोग हैं जो बाकायदा एक क्षेत्र विशेष में अपने काम को अंजाम देते हैं। जहां पर महिला भिखारी बीमार नजर आने वाले बच्चे को किराए पर लाकर उसके नाम पर आपसे मदद मांगती हैं। जहां फटेहाल और बीमार नजर आ रहे मासूम बच्चों की कमाई में से भी बाकायदा कुछ लोगों को हिस्सा जाता है।
ऐसे में यदि कोई संस्था यह कहे कि भीख मांगना अपराध नहीं होना चाहिए तो भला क्या गलत कह रही है? लोग बेचारे अपनी नशे की आदत से मजबूर होकर आपसे पैसा मांगते हैं। हट्टे-कट्टे हैं, मगर मेहनत करने के बजाए भीख मांगकर पेट भरने में विश्वास रखते हैं। पुरूष, कलाकारों की तरह महिला की वेशभूषा में कला दिखाकर पैसे मांगते हैं और नहीं देने पर अधिकार के साथ आपको अपशब्दों से भी नवाजते हैं। फिर ऐसे लोग भला भिखारी कैसे हो सकते हैं। वह तो यह काम उतने ही अधिकार से करते हैं, जितने अधिकार के साथ आप अपना काम करते हैं। भीख मांगना तो उनका मौलिक अधिकार है।
Monday, September 21, 2009
सच का सामना आएं नेताजी तो क्या हो
चर्चित और विवादित टीवी कार्यक्रम सच का सामना में इस बार एक नेताजी मंच पर बैठे हुए थे। एंकर ने पहला सवाल दागा कि क्या आपको टिकट ईमानदारी और मेहनत के कारण मिला था। पहले ही सवाल को सुन ठंडी हवा फेंक रहे एसी के सामने बैठे नेताजी के माथे पर पसीना नजर आने लगा। नेताजी शायद यह सोच रहे थे कि जवाब देते ही उनका तिया-पांचा होना तय हैं। सच बोला तो जनता जूते मारेगी और जवाब हां में दिया तो पहली ही बॉल पर बोल्ड होना तय हैं।
दर्शकों में नेताजी के कुछ राजदार भी बैठ हुए थे। उनमें नेताजी के ऐसे चव्वे भी थे जिन्हें नेताजी विपरित परिस्थितियों से निपटने के लिए खास मित्र बताकर साथ लाए थे। उनमें से एक चव्वा सामने लगा बजर बजाना ही चाहता था कि नेताजी ने इशारे से इंकार कर दिया। चव्वा परेशान यह नेताजी को क्या हो गया है? खुद ही अपनी फजीहत क्यों कराना चाह रहे हैं? मगर वह नेताजी की राजनीति और हार्ट-अटैक से बहुत ज्यादा वाकिफ नहीं था। वह सोच ही रहा था कि नेताजी ने अचानक से सीने पर हाथ रखा और नेताजी को हाट-अटैक हो गया। बेचारा एंकर भी परेशान। सोचने लगा कि नेताजी के हार्ट-अटैक का कारण उसे मान लिया गया तो घर और स्टूडियो पर पथराव और धरने-प्रदर्शन का दौर न शुरू हो जाए।
अभी वह सोच ही रहा था कि डायरेक्टर ने मोबाइल पर फोन कर दिया। बोला कहीं नेताजी भगवान को प्यारे हो गए और मौत के कारणों की जांच के लिए गठित कमेटी के सामने पॉलीग्राफ मशीन ने हार्ट-अटैक का सही कारण बता दिया तो, तुम्हारा तो जो होना है होगा, मैं तो मुफ्त में ही मारा जाऊंगा। नेताजी भी इस पूरे प्रकरण में एक आंख खोलकर नजारा देख और सुन-समझ रहे थे। अब चूंकि पसीना एंकर के माथे पर आ रहा था तो बेचारे नेताजी को तरस आ गया और तेज चिल्लाते हुए बोले मुझे रेस्ट रूम में ले चलो।