
भाजपा अपने घर में बैठे आस्तीन के साँपों के आलावा साथ देने का दम भर रहे भितरघातियों को ढो रही है। बिहार में सत्ता का सुख लेने के लिए भाजपा का दामन थामने वाले नीतिश कुमार जैसे नेता कमजोर कन्धों वाली भाजपा की ताक़त और औकात को बेहतर तरीके से समझते हैं। साढ़े चार साल सत्ता का आनंद लेने के बाद चुनाव नजदीक आता देख संत पुरुष बनने का दम भरने वाले नितिश ने वोट बैंक साधने के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से पल्ला झाड़ने का ड्रामा किया। कभी मोदी के साथ रैली में गलबहियां करते हुए मुस्कराकर तस्वीर खिंचवाने वाले नीतिश को उसी तस्वीर के पोस्टर अख़बारों में छपने पर गुस्सा आ रहा है। उन्होंने इस नाटकीय गुस्से को जाहिर करने के लिए गुजरात से बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए मिला पांच करोड़ रूपए वापस कर दिया। ताकि कुछ लोगो में उनकी छवि बेहतर बन सके। सवाल ये है कि नितीश ने किस हैसियत से गुजरात का पैसा वापस करने का फैसला लिया। क्या बिहार सरकार का खजाना उनका पुश्तैनी है। वो भूल गए है कि लोकतंत्र में उनकी जिम्मेदारी केवल इस पैसे के बेहतर और इमानदार प्रबंधक की ही है। न कि खजाने के मालिक की। लेकिन इस पूरे प्रकरण में सत्ता के इस खेल के लिए सियासी नाटक रचने वाले नितिश नही बल्कि कमजोर साबित हो रहा भाजपा नेतृत्व जिम्मेदार है। फुंके हुए कारतूसो को राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारी सौंपकर आलाकमान पहले ही बता चुका है कि उसका काम करने का अंदाज क्या रहने वाला है। अब भला जो पार्टी खुद गर्त में जाने को तैयार हो उस कमजोर पार्टी के झुके हुए कन्धों को भला कौन सम्मान देगा। ऐसा तो कोई सियासी बेवकूफ ही कर सकता है और नितिश कम से कम ऐसे बेवकूफों की कतार में तो कतई शामिल नहीं होने वाले। मानों या न मानों, लेकिन ऐसा ही है ये देश मेरा...
BJP is almost finished
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